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भारत में हमारा काम किस तरह से उभर रहा है

Published: 14 नवंबर 2023 
Author: Sachin Sachdeva 
Four women in brightly coloured outfits from Iswar Sankalpa's Nayagram assisted community living programme stand together outside in front of a lush green background.
Photo credit: Iswar Sankalpa

नई रणनीति (2023–33) कुछ विशेष सोच और बदलते हुए वातावरण को ध्यान में रख कर लिखी गई है। भारत में हमारे निर्देशक सचिन सचदेवा इस लेख में हमारी नई रणनीति की विशेषताएं का उल्लेख कर रहे हैं और समझा रहे हैं की इस रणनीति में नया क्या है और कौन सी बातों में कोई अंतर नहीं किया गया।

भारत में पॉल हामलिन फाउंडेशन की नई रणनीति प्रस्तुत करते हुए मुझे खुशी है।

हमें गर्व है की हम कुछ ऐसे प्रयासों की मदद कर रहे हैं जो अपने कार्यों में बेहद संवेदनशीलता का उद्धरण हैं और समानुभूति का प्रतीक हैं। बदलते भारत की सामाजिक और आर्थिक तस्वीर को मुद्दे नजर रखते हुए हमने अपनी रणनीति में कुछ परिवर्तन किए हैं।

क्या नहीं बदला है

हमारे कार्य करने के तरीकों में वही पहले जैसा लचीलापन रहेगा। सहायता एक खुले अनुदान’ के रूप में उपलब्ध करायी जाएगी। हमारा अनुदान पहले की तरह किसी विशेष विषय या मुद्दे के लिए नहीं होता। हम छोटी स्वयं सेवी संस्थाओं के साथ ही काम करते रहेंगे और उन्हे उनके चुने हुए उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अनुदान देंगे। पहले ही की तरह, हम भारत के विशाल भू क्षेत्र में से कुछ चुनिंदा राज्यों और कुछ विशेष क्षेत्रों में अपना काम सीमित रखेंगे। हमारा संबंध संस्थाओं के साथ एक रिश्ते की तरह रहा है और हम उसी सद्भाव से संस्थाओं के साथ अपनी साझेदारीको जीवित रखना चाहेंगे

शुरुआत से हमारा ध्यान समुदाय के सशक्तिकरण पर रहा है और हम आगे भी इसी को केंद्र बिन्दु बना कर चलने चाहेंगे। विकास तब होगा जब समुदाय अपने परिस्थितियों को समझ पाएगा, सूझ बूझ और बेहतर जानकारी के आधार पर अपनी समझ बना पाएगा और अपने हित के फैसले खुद ले सकेगा।

नया क्या है

कोविड महामारी ने बहुत कुछ बदल दिया है और हम जानते हैं इसका असर आने वाले कई सालों तक रहेगा। साथ ही उभरती डिजिटल दुनिया भी सामाजिक परिवेश को बदल रहा है। इन पर लगातार ध्यान रखना होगा।

ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी और पूर्ण रोजगार का अभाव लोगों की शायद सबसे बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है। लोग रोज़गार की तलाश में शहरों की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है की गाँवों की गरीबी शहरों की गरीबी में तब्दील हो रही है। शहरों की अपनी समस्याएं हैं और उनको समझना, और उन पर काम करना अपने आप में एक बेहद मुश्किल कार्य है। आने वाले समय में शहरी गरीबी एक महत्वपूर्ण और अर्थपूर्ण चिंता का विषय रहेगा।

भारत की जनसंख्या में युवाओं की संख्या महत्वपूर्ण है। युवा करना बहुत कुछ चाहते हैं पर ज़ाहिर है की उनकी आपेक्षाओं और उनकी अपने क्षमताओं में एक बहुत बड़ा फासला है। इसके चलते उनको एक सुदृढ़ सहारे की जरूरत पड़ सकती है। यह एक चुनौती है और नई रणनीति में युवाओं के मुद्दों और समस्याओं को प्राथमिकता देने का प्रयास रहेगा ताकि युवा अपने सामर्थ्य को प्राप्त कर सके।

सरकार ने बड़े व्यापार संगठनों को बाधित किया है की वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारी की तरफ भी ध्यान दें। CSR अब सामाजिक विकास के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन कर उभर गया है। हालांकि इस से सामाजिक मुद्दों पर कार्य करने के लिए और अधिक संसाधन उपलब्ध हो गए हैं पर विचारधाराओं के चलते बहुत सी चुनौतियां भी साथ साथ आई हैं। हम समझते हैं की मिल कर काम करना बहुत ज़रूरी होगा और हमारा प्रयास यही रहेगा की आपके सहयोग से और बेहतर अवसर उभर के आएंगे जो विकास को और गतिशील बना सकेंगे।

व्यापक दृष्टिकोण

वित्तीय सहयोग उपलब्ध कराना अपने आप में एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है और भविष्य पर इसके प्रभाव को भी हम समझते हैं। कुछ ऐसे मुद्दों को हम एक व्यापक दृष्टिकोण के तहत देखना चाहते हैं जो भविष्य में विकास की प्रक्रियाओं को और सुदृढ़ बना सकते हैं। इस व्यापक सोच को हम आपके सामने रखना चाहते हैं। हमारा प्रयास है की जो भी सहयोग हम करें वह स्वयं सेवी संस्थाओं को और मज़बूती दे सकें और साथ ही पंचायती राज व्यवस्था को भी अधिक ताकत दे सकें।

इन दोनों के साथ हम दो और मुद्दे जोड़ना चाह रहे हैं जो की आज के बदलते युग में महत्वपूर्ण हैं। पहला है जलवायु परिवर्तन और इसका पर्यावरण पर हो रहा प्रभाव। संस्थाओं से हमारी अपेक्षा है की उनके कार्यक्रम पर्यावरण को ध्यान में रख कर बनाए जाएं और पर्यावरण पर किसी भी तरह का विपरीत प्रभाव न हो।

दूसरा मुद्दा लैंगिक समानता से जुड़ा है। हालांकि इस मुद्दे की समझ सुचारु रूप से बढ़ी है पर शायद एक कदम और बढ़ाने के आवश्यकता है। लैंगिक समानता के कार्यक्रमों से अकसर ऐसी गतिविधियां हुई हैं जिसके चलते महिलाओं की भूमिका तो बढ़ती रही हैं पर लैंगिक व्यवस्था में कोई व्यापक फेरबदल नहीं हो पाया है। हमारी अपेक्षा है की हर कार्यक्रम व्यापक लैंगिक समानता को लाने की कोशिश करें, चाहे कोई अपने आप को किसी भी लैंगिक पहचान से क्यों न जोड़ता हो। कार्यक्रम न्यायोचित हों और लैंगिक व्यवस्था में पूर्ण‑परिवर्तन’ ला सकें।

हमारी दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। अगले 10 साल में परिवर्तन की गति पिछले कई दशकों से तेज़ होने वाली है। इसके चलते हमें और पूरे स्वयं सेवी संस्था जगत को अनु क्रियाशील होना होगा। बदलती परिस्थितियों को पहचानना पड़ेगा और बदलना पड़ेगा ताकि हम उन परिस्थितियों का मज़बूती से सामना कर सकें और सही दिशा ले सकें। हमें अपेक्षा है आप सब से हमें सही समय पर सही फीडबैक मिल सकेगा ताकि हम समय के अनुसार प्रासंगिक बने रह सकें।

इस रणनीति से संबंधित आप के प्रश्नों पर चर्चा करने में हमें खुशी होगी और आपके साथ काम करने में भी।

Director, India